धन और समृद्धि प्राप्ति के लिए Sri Suktam PDF द्वारा नित्य पाठ करना चाहिए। इससे माँ लक्ष्मी अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होती है। परिणाम रूप जीवन में सुख-शांति और धन की कमी नहीं रहती।
सच्चे भक्त को श्री सूक्त पाठ द्वारा 5 लाभ अवश्य प्राप्त होते है।
- धन, संपत्ति और समृद्धि प्राप्त होती है।
- व्यापार या व्यवसाय में लाभ मिलता है।
- अपने जीवन में सकारात्मकता आती है।
- पाठ द्वारा आध्यात्मिक उन्नति बढ़ती है।
- इससे परिवार एक साथ जुड़ा रहता है।
विशेष : श्री सूक्तम ऋग्वेद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह वेदमंत्र माँ लक्ष्मी को समर्पित है। देवी लक्ष्मीजी द्वारा आशीर्वाद पाने का यह एक अद्भुत तरीका है।
Shri Suktam PDF Download in Hindi
यहाँ सबसे पहले Shri Suktam PDF को मात्र एक क्लिक में डाउनलोड करने की सुविधा दी है। फिर संपूर्ण श्री सूक्त पाठ को सरल अर्थ के साथ समझाया है।
PDF Name | Shri Suktam |
Total Pages | 8 |
PDF Size | 207 KB |
Main Source | Lyricsset |
Language | Hindi |
Provider | Sabsastaa |
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श्री सूक्त संपूर्ण पाठ हिंदी (संस्कृत) में
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥1॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥4॥
प्रभासां यशसा लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात् ॥8॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥9॥
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥
कर्दमेन प्रजाभूता सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस गृहे ।
नि च देवी मातरं श्रियं वासय कुले ॥12॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥13॥
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥14॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥15॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥
पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षी पद्मासम्भवे ।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥17॥
अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने ।
धनं मे जुषताम् देवी सर्वकामांश्च देहि मे ॥18॥
पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥19॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते ॥20॥
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु ॥21॥
न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः ।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥22॥
वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥23॥
पद्मप्रिये पद्म पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥24॥
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ॥25॥
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥26॥
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥27॥
श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥28॥
सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥29॥
वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीस्वरीं त्वाम् ॥30॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥31॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥32॥
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥33॥
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥34॥
श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते ।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥35॥
ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥36॥
य एवं वेद ॐ महादेव्यै च विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥37॥
श्री सूक्त पाठ (हिंदी अर्थ सहित)
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजां |
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||1||
अर्थात : हे देवों के प्रतिनिधि अग्निदेव, सुवर्ण की तरह वर्णवाली, दरिद्रता को दूर करने वाली हरिणी की तरह गतिवाली, सुवर्ण और चांदी की माला धारण करने वाली चंद्रमा की तरह शीतल। पुष्टिकरी, सुवर्णरूप, तेजस्वी, लक्ष्मीजी को मेरे यहाँ मेरे उद्धार के लिए लाओ।
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहं ||2||
अर्थात : जिसने वेदो प्राप्त किया है, हे लक्ष्मी नारायण, ऐसी अविनाशी लक्ष्मी को मेरे पास ले आओ। जिससे मैं सुवर्ण, गाय, पृथ्वी, घोड़ा, इष्टमित्र (पुत्र-पौत्रादि-नौकर) को पा सकूँ।
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम |
श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषतां ||3||
अर्थात : सेना के आगे दौड़ते अश्व के मध्य में बैठी हुई है, हाथियों के नाद से ज्ञात होता है कि लक्ष्मी आई है। मैं ऐसी लक्ष्मी का आह्वान करता हूँ जो मेरे ऊपर सदा कृपा करती है। मैं स्थिर लक्ष्मी का आह्वान करता हूँ, तुम मेरे यहाँ आओ और स्थिर रहो।
ॐ कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं |
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियं ||4||
अर्थात : जो अवर्णनीय और मधुर हास्यवाले है, जो सुवर्णरूपी तेजोमय पुंज से प्रसन्न, तेजस्वी और क्षीर समुद्र में रहनेवाले षडभाव से रहित भावना से प्रकाशमान है। और सदा तृप्त होने से भक्तों को भी तृप्त रखनेवाली अनासक्ति की प्रतिक कमल के आसन पर बिराजमान है। और कमल की तरह सुंदर रूप वाली लक्ष्मीजी को मेरे घर में आने के लिये आग्रह करता हु।
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम |
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वं वृणे ||5||
अर्थात : चन्द्रमा की तरह प्रकाशमान, सुखद, स्नेह, कृपा से भरपूर, सर्व देवोसे युक्त, कमल की तरह अनासक्त लक्ष्मी की शरण में मैं जा रहा हूँ। दुर्गा की कृपा से मेरी दरिद्रता दूर होगी, इसलिए मैं माँ लक्ष्मी का वरण करता हूँ।
ॐ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्वः |
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ||6||
अर्थात : सूर्य की तरह तेजस्वी माँ जगतमाता, आप लोगों का कल्याण करने के लिए एक वनस्पति के रूप में बिल्ववृक्ष को उत्पन्न किया है। आपकी कृपा से बिल्ववृक्ष मेरे अंतःकरण में रहता है और अज्ञान, कार्य, शोक, मोह आदि जो मेरे अंतः दरिद्र का संकेत हैं। उनका विनाश करनेवाले हैं, जैसे धनभाव मेरे बाह्य दरिद्र को मारता है।
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह |
प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में ||7||
अर्थात : देवी माँ लक्ष्मीजी जो महादेव के सखा कुबेर और यश के अभिमानी देवता चिंतामणि सहित मुझे प्राप्त हो। में इस राष्ट्र में जन्मा हु, इसलिए वो कुबेर मुझे जगत में व्याप्त हुई लक्ष्मी को प्रदान करे यश-समृद्धि-ब्रह्मवर्चस दीजिये।
ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठांलक्ष्मीं नाशयाम्यहं |
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद में गृहात ||8||
अर्थात : मैं सुलक्ष्मी को प्राप्त करूँगा. सबसे पहले, मैं अपने कमजोर शरीर को, जो दरिद्रता और मलिनता से भरा हुआ है, उद्योगों से नष्ट करूँगा। हे महालक्ष्मी, मेरे घर में अभाव और दरिद्रता को दूर करो।
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करिषिणीम |
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियं ||9||
अर्थात : मैं आपको अपने देश में आने के लिये आमंत्रित करता हूँ। हे अग्निनारायण देव, सुगंधवाले, जो सदा पुष्ट, सुखद, समृद्ध और सृष्टि को अपने नियमानुसार रखनेवाले पृथ्वी की तरह है।
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि |
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ||10||
अर्थात : हे माँ लक्ष्मीजी, आपकी कृपा से मैं खुशी, शुभ संकल्प, और प्रमाणिकता पाता हूँ। आपकी कृपा से मैं गौ जैसे पशुओं को भोजन और सभी प्रकार की संपत्ति पाता हूँ।
ॐ कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम |
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीं ||11||
अर्थात : लक्ष्मी देवी कर्दम नामक पुत्र से आप युक्त हो, हे लक्ष्मी पुत्र कर्दम, आप मेरे घर में खुशी से रहो। कमल की माला धारण करनेवाली आपकी माता श्री लक्ष्मी, मेरे घर में स्थिर रहो। लक्ष्मी जो अपने पुत्र से प्यार करती है, वह अपने पुत्र के पीछे दौड़ती है।
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे |
नि च देविं मातरं श्रियं वासय मे कुले ||12||
अर्थात : हे लक्ष्मीजी के पुत्र चिक्लीत, जिसके नाम मात्र से लक्ष्मीजी आर्द्र (पुत्र प्रेम से जो स्नेह से भीग जाती है) कृपा करके मेरे घर में रहो। जल से उत्पन्न हुई लक्ष्मीजी मेरे घर में स्नेहपूर्ण मंगल कार्य करती रहे, ऐसा मुझे आशीर्वाद दो।
ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीं |
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||13||
अर्थात : हे जातवेद अग्नि से भीगे हुए अंगोंवाली, कोमल हृदयवाली, जिसने धर्मदण्ड की लकड़ी हाथ में रखी है। सुशोभित वर्णवाली, जिसने स्वयं सुवर्ण की माला पहनी है। वो जिसकी कांति तेजस्वी सूर्य के समान है, ऐसी लक्ष्मी मेरे घर आओ, सदा रहो।
ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीं |
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||14||
अर्थात : देवी जातवेद अग्नि, भीगे हुए अंगों वाली आर्द्र (जो हमेशा हाथी की सूंढ़ से अभिषेक होता है) हाथो में पद्म धारण करने वाली, गौरवर्ण वाली, चंद्र की तरह प्रसन्न करने वाली, भक्तों को पुष्ट करने वाली तेजस्वी लक्ष्मी को मेरे पास भेजो।
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान विन्देयं पुरुषानहं ||15||
अर्थात : हे अग्निनारायण, आप मेरा कभी साथ नहीं छोड़ेंगे, ऐसी अक्षय लक्ष्मी को मेरे लिए भेजने की कृपा करें। जिसके आगमन से मैं बहुत धन-सम्पत्ति, गौ-दास-दासिया-घोड़े-पुत्र-पौत्रादि आदि को पाऊँगा।
ॐ यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहयादाज्यमन्वहं |
सूक्तं पञ्चदशचँ च श्रीकामः सततं जपेत ||16||
अर्थात : जिस व्यक्ति को अपार धन या संपत्ति प्राप्त करने की इच्छा हो। उसे हर दिन स्नान करके पूर्ण भाव से अग्नि में इस ऋचाओं द्वारा गाय के घी से यज्ञ करने पर लाभ मिलेगा।
श्री सूक्त पाठ के महत्वपूर्ण नियम
यह एक बेहद महत्वपूर्ण पाठ है, इसलिए इसे सही विधि नियम के साथ ही उपयोग में लेना चाहिए।
- श्री सूक्तम पाठ से पहले स्नान कर के खुद को स्वत्छ कर लीजिये।
- पाठ करने के लिए सुबह सूर्योदय का समय चुने तो अच्छा है।
- या आप चाहे तो पंडित जी द्वारा कोई शुभ मुहृत भी निकलवा सकते हो।
- ध्यान रहे पाठ समय अपनी बाएं हाथ को दाहिनी तरफ मोड़ना है।
- श्री सूक्त पाठ के दौरान सभी मंत्रो का सही उच्चारण करना जरुरी है।
- इस विशेष मंत्र का पाठ करने के बाद हवन करना लाभकारक है।
अधिक लाभ के लिए आप चाहे तो नित्य भी श्री सूक्त पाठ कर सकते है। इससे माँ लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद आप पर बना रहेगा।
सवाल जवाब (FAQ)
श्री सूक्त पाठ को लेकर भक्तो में कुछ सवाल है, जिसके जवाब निचे बताये है।
(1) श्री सूक्त का पाठ कितने दिन करना चाहिए?
माँ लष्मी से जुड़ने के लिए रोजाना श्री सूक्तम पाठ पढ़ना चाहिए। पर यदि समय की कमी हो तो शुक्रवार के दिन सूर्योदय का समय अच्छा है।
(2) श्री सूक्त का पाठ करने से क्या होता है?
देवी लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए ‘लक्ष्मी सूक्तम्’ का पाठ करना जरुरी है। इससे व्यक्ति अपने जीवन में खूब धन-संपत्ति पाता है।
(3) श्री सूक्तम में कितने मंत्र हैं?
माँ लक्ष्मी के श्री सूक्तम में कुल 16 मंत्रो का संग्रह है। जिसे आप उपरोक्त दर्शायी लिखिति पीडीएफ द्वारा पढ़ सकते है।
आशा करता हु Shri Suktam PDF का लाभ आप जरूर उठाएंगे। मिलते है अपनी नेक्स्ट पोस्ट में तब तक स्वस्थ रहिये मस्त रहिये।