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श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित | Ram Raksha Stotra Hindi PDF

जीवन में रक्षा और उन्नति के लिए श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना बेहद लाभदायी है। भक्तो के लिए यहाँ Ram Raksha Stotra PDF और लिरिक्स में दर्शाया है। साथ ही स्तोत्र का मतलब समझने के लिए अर्थ भी है।

श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित | Ram Raksha Stotra Hindi PDF

राम रक्षा स्तोत्र पढ़ने पर व्यक्ति को 5 लाभ अवश्य मिलते है

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  • हर खतरे से भक्त को सुरक्षा मिलती है।
  • भक्त पर बुरी शक्तिया हावी नहीं होती।
  • मानसिक शांति का प्रमाण बढ़ता है।
  • नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
  • सफलता के अधिक रास्ते खुलते है।

विशेष : यह लाभ व्यक्ति की पवित्र भक्ति, श्रद्धा और साधना से आते हैं। इसलिए जरूरी है कि आप पूरा मन लगा कर स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करें।

Shri Ram Raksha Stotra Hindi Lyrics

यहाँ सबसे पहले संपूर्ण राम रक्षा स्तोत्र का हिंदी लिरिक्स दर्शाया है। फिर PDF Download की लिंक है और अंत में लिखित अर्थ सहित पूरा स्तोत्र बताया है।

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Shri Ram Raksha Stotra Hindi Lyrics

|| विनियोग: ||

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श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता अनुष्टुप् छन्द: सीता शक्ति: ।
श्रीमद्‌हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

॥ अथ ध्यानम् ॥

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ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्‌मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥

वामाङ्‌कारूढ-सीता-मुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥

॥ इति ध्यानम् ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥

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सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

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जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

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सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामो खिलं वपु: ॥९॥

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एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

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जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥१३॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

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आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

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शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङि‌गनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्‌ मनोरथो स्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

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रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

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वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम: ॥२३॥

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

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रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

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रामं लक्ष्मण-पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥

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रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

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श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

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माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: ।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

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दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥

लोकाभिरामं रणरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरन्तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

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कूजन्तं राम-रामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥

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भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे,
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् ,
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

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राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

॥ इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

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Shri Ram Raksha Stotra PDF In Hindi

Shri Ram Raksha Stotra PDF In Hindi

इस महत्वपूर्ण स्तोत्र को अपने मोबाइल या लैपटॉप में डाउनलोड कर के रखना चाहिए। ताकि जब भी आवश्यकता हो आप तुरंत लाभ उठा पाए।

PDF Name Ram Raksha Stotra
Total Pages 14
PDF Size 809 KB
File Maker InstaPDF
Location Google Drive
Provider Sabsastaa

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GIFT : यदि आप किसी व्यक्ति को उपहार में राम रक्षा स्तोत्र देना चाहते है। तो निचे बताई प्रीमियम क्वालिटी बुक दे सकते है, जिसमे संपूर्ण स्तोत्र शामिल है।

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श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ (अनुवाद) सहित

|| विनियोग: ||

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अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता अनुष्टुप् छन्द: सीता शक्ति: ।
श्रीमद्‌हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

अर्थात : इस रामरक्षा स्तोत्र मंत्र का रचयिता बुध कौशिक ऋषि है, जो सीता और रामचंद्र देवता हैं. इस मंत्र का अनुष्टुप छंद है, सीता शक्ति है, हनुमान कीलक है, और श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए इसका जप किया जाता है।

॥ अथ ध्यानम्‌ ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥

अर्थात : मैं उन अजानबाहु, विभिन्न आभूषणों से सजे हुए जटाधारी श्री राम का ध्यान करता हूँ। जो धनुष बाण धारण किये हुए हैं, बद्ध पद्मासन की मुद्रा में विराजित हैं। पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके प्रकाशित नेत्र नए कमल दलों से स्पर्धा करते हैं। अर्थात जो कमल दलों से भी सुन्दर हैं, जिनके बाएं अंक में बैठी माँ सीता है।

॥ इति ध्यानम्‌ ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥

अर्थात : श्री राम रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं। उनका एक-एक अक्षर महापातकों का नष्ट करने वाला है।

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥

अर्थात : नीले कमल के श्याम वर्ण, कमल नेत्र, जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी और लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान श्री राम का स्मरण करके।

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ ।
स्वलीलया जगन्नातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥

अर्थात : जो अजन्मा (जिनका जन्म न हुआ हो, अर्थात जो प्रकट हुए हों), एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके।

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥४॥

अर्थात : मैं रामरक्षास्तोत्र पाठ करता हूँ, जो सभी कामनाओं को पूरा करता है और सभी पापों को दूर करता है। दशरथ के पुत्र और राघव मेरे सिर की रक्षा करें।

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

अर्थात : कौशल्यानंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण (नाक) की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें।

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥६॥

अर्थात : मेरी जिह्वा की विधानिधि की रक्षा करें, भरत-वन्दित मेरे कंठ की रक्षा करें। मेरे कंधों की दिव्यायुध की रक्षा करें, मेरी भुजाओं की दिव्यायुध की रक्षा करें। महादेव का धनुष तोड़ने वाले की भगवान श्रीराम रक्षा करें।

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

अर्थात : मेरे हाथों की सीता श्रीराम, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम), मध्य भाग की खर (राक्षस) और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता की रक्षा करें।

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥

अर्थात : मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु, श्री राम जाँघों की रक्षा करो।

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥९॥

अर्थात : श्री राम, सेतु बनाने वाले मेरे घुटनों की, दशानन को मारने वाले मेरी अग्रजंघा की, विभीषण को प्रसन्न करने वाले मेरे चरणों की और विभीषण को प्रसन्न करने वाले मेरे पूरे शरीर की रक्षा करें।

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥

अर्थात : भक्त भक्ति और श्रद्धा के साथ रामबल से मिलकर इस स्तोत्र का पाठ करने वाले व्यक्ति दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील होंगे।

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

अर्थात : वह लोग जो पाताल, पृथ्वी और आकाश में रहते हैं या छद्म रूप में रहते हैं, वे भी राम नामक सुरक्षित व्यक्ति को नहीं देख सकते।

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

अर्थात : राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता। इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भक्ति और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है।

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१३॥

अर्थात : राम नामक जगत को जीतने वाले इस मंत्र को जो कोई अपने कंठ में धारण करता है, उसे सभी सिद्धियाँ मिलती हैं।

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्। ॥१४॥

अर्थात : वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करने वाले व्यक्ति को कभी भी उसकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं होता। उसे सदा विजय और सुख मिलते हैं।

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

अर्थात : स्वप्न में बुधकौशिक ऋषि को भगवान शिव का आदेश होने पर ऋषि जी ने सुबह जागने पर इस स्तोत्र को लिखा।

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥

अर्थात : श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करते हैं। कल्प वृक्षों के बगीचे की तरह विश्राम देते हैं और तीनो लोक में सुंदर हैं।

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

अर्थात : जो युवा, सुंदर, सुकुमार, महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं और मुनियों की तरह वस्त्र और काले मृग का चर्म पहनते हैं।

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

अर्थात : दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण, जो फल और कंद खाते हैं। संयमी, तपस्वी और ब्रह्मचारी हैं, वे हमारी रक्षा करें।

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥

अर्थात : ऐसे महाबली, रघुश्रेष्ठ, मर्यादा पुरूषोतम, सभी जीवों की रक्षा करने वाले, धनुर्धारियों में सर्वश्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों को नष्ट करने वाले हमारी रक्षा करो।

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग संगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥

अर्थात : राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें। वे संघान किए धनुष, बाण और अक्षय बाणों से युक्त तुणीर पहने हैं।

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथोऽस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥

अर्थात : हमेशा तैयार, कवचधारी, हाथ में खडग और धनुष-बाण धारण किए हुए युवा भगवान राम लक्ष्मण हमारी रक्षा करे।

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

अर्थात : महादेव शिव का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम।

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥

अर्थात : वेदांतवेद्य, यज्ञेश, पुराण पुरूषोतम, जानकी वल्लभ, श्रीमान और श्री अप्रमेय पराक्रम।

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

अर्थात : आदि नामों का निरंतर श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक लाभ मिलता है।

रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामिभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणौ नरः ॥२५॥

अर्थात : दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसार चक्र में नहीं पड़ता।

रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ॥
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥

अर्थात : मैं भगवान राम (लक्ष्मण के बड़े भाई), सीता के पति, काकुत्स्थ राजा के वंशज, करुणा के सागर, गुण-निधान, विप्रों (ब्राह्मणों) के प्रिय, परम धार्मिक (धर्म के रक्षक), राजराजेश्वर (राजाओं के राजा), सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्यामवर्ण, शान्ति स्वरुप, सर्वत्र सुंदर, रघुकुल तिलक, राघव और रावण के शत्रु श्री राम को में वंदन करता हु।

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

अर्थात : मैं वंदना करता हूँ राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप, रघुनाथ प्रभु एवं सीता जी के स्वामी की।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

अर्थात : हे रघुनन्दन श्रीराम! हे भरत के बड़े भाई भगवान राम! हे वीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम! मुझे बचाइए।

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

अर्थात : मैं भगवान रामचंद्रजी के चरणों का स्मरण करता हूँ और उनके शब्दों का गुणगान करता हूँ। मैं पूरी श्रद्धा से उनके चरणों की शरण लेता हूँ और उनके शब्दों को मानता हूँ।

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

अर्थात : श्रीराम मेरे माता, पिता, मालिक और सखा हैं। दयालु श्रीराम मेरा सब कुछ हैं, मैं उनके सिवा किसी को नहीं जानता।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥

अर्थात : जिनके दक्षिण में लक्ष्मण जी, बाई ओर जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं। मैं ऐसे रघुनाथ जी की सह प्रणाम वंदना करता हूँ।

लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

अर्थात : मैं श्रीराम, करुणा की मूर्ति और करुणा के भंडार की शरण में हूँ, जो सभी जगह सुंदर और युद्धकला में धीर है, रघुवंश नायक है।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

अर्थात : मैं मन के समान गति और वायु के सामान वेग (अत्यंत तेज) वाले, वायु के पुत्र, वानर दल के अधिनायक, श्रीराम दूत (हनुमान) की शरण लेता हूँ।

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥

अर्थात : मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की प्रशंसा करता हूँ।

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥

अर्थात : मैं हर जगह सुंदर श्री राम को बार-बार प्रणाम करता हूँ, जो दुःख दूर करते हैं और सुख देते हैं।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥

अर्थात : “राम-राम” का जप करने से सभी दुःख दूर हो जाते हैं। वह सब सुख और ऐश्वर्य प्राप्त करता है। राम राम की आवाज से यमदूत हमेशा डरते हैं।

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

अर्थात : श्रीराम राजाओं में सदा विजयी होते हैं। मैं श्रीराम, लक्ष्मीपति भगवान का ध्यान करता हूँ। मैं श्रीराम को नमस्कार करता हूँ, जो पूरी राक्षस सेना को मार डाला। श्रीराम एकमात्र आश्रयदाता हैं, उन शरणागत कर्तव्यों का दास हूँ। श्रीराम मैं हमेशा लीन रहूँ श्रीराम, संसार सागर से मेरा उद्धार करो।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

अर्थात : शिवजी पार्वती से कहते हैं, हे सुमुखी! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं। मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम नाम में ही रमण करता हूँ।

श्री राम रक्षा स्तोत्र का लिरिक्स वीडियो

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श्री राम रक्षा स्तोत्र का महत्त्व

भारतीय संस्कृति में पूजनीय प्रभु श्रीराम का महत्व विशेष है और उनकी भक्ति धार्मिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। श्रीराम रक्षा स्तोत्र, जो श्रीगुरु बुध कौशिक द्वारा रचित हुआ है। श्रीराम के भक्तों के लिए यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक पाठ है। जो उनकी रक्षा और सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है।

श्रीराम रक्षा स्तोत्र की महत्वपूर्ण बात यह है कि यह श्रद्धा और आस्था के साथ-साथ श्रीराम के प्रति भक्ति और समर्पण को भी प्रेरित करता है। इससे भक्त अपने जीवन के अधिकांश हर हिस्से में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

श्री राम रक्षा स्तोत्र द्वारा हम भगवान श्री राम से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। यह कथा रामायण के एक युद्ध काण्ड में वर्णित है, जब रावण ने भगवान राम पर बड़ा हमला किया था।

यह रक्षा स्तोत्र पढ़ने से भगवान श्री राम की अनंत कृपा मिलती है। यह स्तोत्र जीवन में सुख, शांति, समृद्धि लाता है और शत्रुओं से बचाता है। नियमित रूप से पढ़ने पर मन शांत रहता है और भय दूर होता है।

आशा करता हु श्री राम रक्षा स्तोत्र सम्बंधित अच्छी जानकारी देने में सफल रहा हु। प्रभु श्री राम की इस महत्वपूर्ण स्तोत्र जानकारी को अपने सभी दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे।

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By Karanveer

में करनवीर पिछले 8 साल से Content Writing के कार्य द्वारा जुड़ा हूँ। मुझे ऑनलाइन शॉपिंग, प्रोडक्ट रिव्यु और प्राइस लिस्ट की जानकारी लिखना अच्छा लगता है।

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