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श्री दुर्गा कवच लिरिक्स और PDF | Durga Kavach in Hindi (अर्थ सहित)

यहाँ श्री दुर्गा कवच के लिरिक्स हिंदी और संस्कृत भाषा में दर्शाये है। साथ ही संपूर्ण कवच का पाठ करने की विधि जानकारी है। पोस्ट के अंतिम हिस्से में Durga Kavach PDF डाउनलोड करने की सुविधा है।

देवी दुर्गा कवच लिरिक्स और PDF | Durga Kavach in Hindi (अर्थ सहित)

देवी दुर्गा कवच सृष्टि रचेता ब्रम्हाजी और ऋषि मारकंड के बिच का संवाद है। यह कवच भक्त द्वारा पढ़ने पर 5 विशेष लाभ मिलते है

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  • शरीर का स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
  • भूत-प्रेत और पिशात दूर भागते है।
  • हमें कवच की तरह रक्षा मिलती है।
  • भय और डर समाप्त हो जाते है।
  • देवी माँ से सिद्धियां प्राप्त होती है।

विशेष : कुल मिला कर आप माँ दुर्गा से अपने जीवन में रक्षा और सुख पाना चाहते है। तो नवरात्री अवसर या नित्य दिनों में दुर्गा कवच का पाठ जरूर करे।

श्री दुर्गा कवच लिरिक्स (Durga Kavach Lyrics)

आपकी संपूर्ण सहायता के लिए यहाँ देवी श्री दुर्गा कवच को 3 तरह से दर्शाया है

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  • सरल हिंदी में
  • संस्कृत में
  • अर्थ के साथ

यहाँ सबसे पहले श्री दुर्गा कवच का हिंदी लिरिक्स है, फिर ओरिजिनल संस्कृत भाषा आधारित कवच है। साथ ही अर्थ सहित प्रत्येक संस्कृत कवच का अनुवाद बताया है।

नोट : यदि आप PDF Download करना चाहते है तो वह लिरिक्स के बाद वाले विभाग में है।

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(1) Durga Kavach In Hindi

Shri Durga Kavach In Hindi

ऋषि मार्कंड़य ने पूछा जभी !
दया करके ब्रह्माजी बोले तभी !!
के जो गुप्त मंत्र है संसार में !
हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में !!

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हर इक का कर सकता जो उपकार है !
जिसे जपने से बेडा ही पार है !!
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का !
जो हर काम पूरे करे सवाल का !!

सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ !
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ !!
कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना !
जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता !!

नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये !
उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!

पहली शैलपुत्री कहलावे !
दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे !!
तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम !
चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम !!

पांचवी देवी अस्कंद माता !
छटी कात्यायनी विख्याता !!
सातवी कालरात्रि महामाया !
आठवी महागौरी जग जाया !!
नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने !

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नव दुर्गा के नाम बखाने !!
महासंकट में बन में रण में !
रुप होई उपजे निज तन में !!
महाविपत्ति में व्योवहार में !
मान चाहे जो राज दरबार में !!
शक्ति कवच को सुने सुनाये !
मन कामना सिद्धी नर पाए !!

चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार !
बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
हंस सवारी वारही की !

मोर चढी दुर्गा कुमारी !!
लक्ष्मी देवी कमल असीना !
ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा !!
ईश्वरी सदा बैल सवारी !
भक्तन की करती रखवारी !!

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शंख चक्र शक्ति त्रिशुला !
हल मूसल कर कमल के फ़ूला !!
दैत्य नाश करने के कारन !
रुप अनेक किन्हें धारण !!
बार बार मैं सीस नवाऊं !
जगदम्बे के गुण को गाऊँ !!

कष्ट निवारण बलशाली माँ !
दुष्ट संहारण महाकाली माँ !!
कोटी कोटी माता प्रणाम !
पूरण की जो मेरे काम !!

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दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ !
चमन की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!

अग्नि से अग्नि देवता !
पूरब दिशा में येंदरी !!
दक्षिण में वाराही मेरी !
नैविधी में खडग धारिणी !!
वायु से माँ मृग वाहिनी !
पश्चिम में देवी वारुणी !!
उत्तर में माँ कौमारी जी!
ईशान में शूल धारिणी !!
ब्रहामानी माता अर्श पर !
माँ वैष्णवी इस फर्श पर !!

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चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो !
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!
सन्मुख मेरे देवी जया !
पाछे हो माता विजैया !!
अजीता खड़ी बाएं मेरे !
अपराजिता दायें मेरे !!
नवज्योतिनी माँ शिवांगी !
माँ उमा देवी सिर की ही !!

मालाधारी ललाट की, और भ्रुकुटी कि यशर्वथिनी !
भ्रुकुटी के मध्य त्रेनेत्रायम् घंटा दोनो नासिका !!
काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी !
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो !!
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!

ऊपर वाणी के होठों की !
माँ चन्द्रकी अमृत करी !!
जीभा की माता सरस्वती !
दांतों की कुमारी सती !!
इस कठ की माँ चंदिका !
और चित्रघंटा घंटी की !!
कामाक्षी माँ ढ़ोढ़ी की !
माँ मंगला इस बनी की !!
ग्रीवा की भद्रकाली माँ !
रक्षा करे बलशाली माँ !!

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दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारनी !
दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जग तारनी !!
शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी !
जंघा स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जग वासिनी !!
हृदय उदार और नाभि की, कटी भाग के सब अंग की !

गुम्हेश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की !!
घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी !
टकखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासनी !!
रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर !
आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर !!

बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान !
सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान !!
धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन !
तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण !!
आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार !
ब्रह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार !!
विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल !
दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल !!

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भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश !
मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश !!
यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये !
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए !!
है जग जननी कर दया, इतना दो वरदान !

लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान !!
मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाए !
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर मे आये !!

ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड़य !
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया !!
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा !
जगत की भलाई को मैंने बताया !!

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सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित !
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया !!
चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो !
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया !!

जो संसार में अपने मंगल को चाहे !
तो हरदम कवच यही गाता चला जा !!
बियाबान जंगल दिशाओं दशों में !
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा !!
तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में !
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा !!
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे !
चमन पाव आगे बढ़ता चला जा !!
तेरा मान धन धान्य इससे बढेगा !
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए !!

यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा !
यही तेरे सिर से हर संकट हटायें !!
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक !
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये !!
इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर !
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए !!

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इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे !
कृपा से आधी भवानी की, बल और बुद्धि बढे !!
श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम !
सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम !!
कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादाँ !
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण !!

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(2) Durga Kavach In Sanskrit

Shri Durga Kavach In Sanskrit

॥मार्कण्डेय उवाच॥
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥

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अर्थात : मार्कण्डेय ने कहा, हे पितामह! जो इस संसार में परम गोपनीय है और मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने नहीं प्रकट किया है, ऐसा कोई साधन मुझे बताओ।

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॥ब्रह्मोवाच॥
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्‌।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥2॥

अर्थात : ब्रह्मन्! ऐसा साधन एक महा देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी अधिक गोपनीय, पवित्र और सभी जीवों का उपकार करती है। हे महामुने, आप उसे ध्यानपूर्वक सुनें।

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प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्‌॥3॥

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अर्थात : पहली मूर्ति का नाम शैलपुत्री है और दूसरी मूर्ति ब्रह्मचारिणी है। तीसरा स्वरूप चन्द्रघण्टा कहलाता है, कूष्माण्डा चौथी मूर्ति है।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्‌॥4॥

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अर्थात : पाँचवीं दुर्गा स्कन्दमाता कहलाती है, देवी का छठा रूप कात्यायनी कहलाता है। सातवाँ कालरात्रि और आठवाँ स्वरूप महागौरी के नाम से जाना जाता है।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥

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अर्थात : नवीं दुर्गा सिद्धिदात्री कहलाती है, सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् ने इन नामों की स्थापना की है। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा के द्वारा ही प्रतिपादित किये हैं।

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥

अर्थात : जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया हो, विषम संकट में फँस गया हो और इस प्रकार भयभीत होकर भगवती दुर्गा की शरण में आया हो, उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता।

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न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न ही॥7॥

अर्थात : युद्धकाल में संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई खतरा नहीं है। उनका शोक, दुःख और भय बिलकुल नहीं होता।

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यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥

अर्थात : जिन भक्तो ने भक्तिपूर्वक माता का स्मरण किया है, वे निश्चित रूप से अभ्युदय पाते हैं। देवेश्वरि! तुम निश्चय ही उन लोगों की रक्षा करती हो जो आपका विचार करते हैं।

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प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥9॥

अर्थात : माँ चामुण्डा देवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं और वाराही भैंसे पर सवारी करती हैं। ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है, वैष्णवी देवी गरुड़ पर ही आसन सवारी लेती हैं।

माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥

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अर्थात : देवी माहेश्वरी वृषभ पर बैठती हैं, कौमारी का मयूर है। भगवान् विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मीदेवी जी कमल के आसन पर विराजमान हैं,और हाथों में कमल धारण किये दिखती हैं।

श्वेतरूपधारा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥11॥

अर्थात : ईश्वरी देवी वृषभ पर श्वेत रूप में है। ब्राह्मी देवी हंस पर बैठी हुई हैं और विविध आभूषणों से सजाई हुई हैं।

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इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥12॥

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अर्थात : इस प्रकार ये सभी माताएँ विभिन्न योग शक्तियों से भरपूर हैं। इनके अलावा कई और भी देवियाँ हैं, जो कई तरह के आभूषणों से सुशोभित हैं और कई तरह के रत्नों से सजाए गए हैं।

दृश्यन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधसमाकुला:।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥13॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥14॥
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुद्धानीथं देवानां च हिताय वै॥15॥

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अर्थात : ये सभी देवियाँ गुस्से में हैं और अपने भक्तों को बचाने के लिए रथ पर बैठी हैं। ये अपने हाथ में शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल और उत्तम शार्ङ्गधनुष रखती हैं। उनके शस्त्रों का उद्देश्य है दैत्यों का शरीर नष्ट करना, भक्तों को अभय देना और देवताओं का कल्याण करना।

नमस्तेस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16॥
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्रि आग्नेय्यामग्निदेवता॥17॥
दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खङ्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥18॥

अर्थात : महान रौद्ररूप, महान पराक्रम, महान बल और महान उत्साह वाली देवी, तुम्हें नमस्कार। आप की तरफ देखना भी कठिन है। मेरे शत्रुओं को भयभीत करने वाली जगदम्बिक मेरी रक्षा करो। मैं अग्निकोण में अग्निशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही और नैर्ऋत्यकोण में खड्गधारिणी से बचाऊँगा। पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्य दिशा में मृग पर सवार देवी मेरी रक्षा करें।

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥19॥
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहाना।
जाया मे चाग्रतः पातु: विजया पातु पृष्ठतः॥20॥

अर्थात : ईशानकोण में कौमारी और उत्तर दिशा में शूलधारिणी देवी की रक्षा करें। ब्रह्माणि, तुम मेरी रक्षा ऊपर से करो और वैष्णवी देवी नीचे से करो। इसी तरह, शव को अपना वाहन बनानेवाली चामुण्डा देवी मेरी दस दिशाओं में रक्षा करे। जय आगे और जीत पीछे मेरी रक्षा करे।

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥21॥
मालाधारी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥22॥

अर्थात : वाम भगीय हिस्से में अजिता और दक्षिण भाग में अपराजिता रक्षा करने में। उद्योतिनी शिखा की रक्षा करे, उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा लाभार्थे। ललाट में मालाधरी रक्षा करे और यशस्विनी देवी मेरी भौंहों का संरक्षण करे। भौंहों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करे।

शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले च शांकरी॥23॥
नासिकायां सुगन्दा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥24॥

अर्थात : ललाट में मालाधरी रक्षा करो, और यशस्विनी मेरी भौंहों को बचाओ। त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करें। नासिका में सुगन्धा और चर्चिका देवी रक्षा करें। ऊपरी ओंठ में अमृतकला और जिह्वा में सरस्वती जी रक्षा करें।

दन्तान्‌ रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥25॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥26॥

अर्थात : कौमारी जड़ दाँतों की और चण्डिका कण्ठप्रदेश की रक्षा करे। चित्रघण्टा गले की घाँटी और महामाया तालु में रहकर रक्षा करे। कामाक्षी ठोढी की और सर्वमङ्गला मेरी वाणी की रक्षा करे। भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धरी पृष्ठवंश (मेरुदण्ड)में रहकर रक्षा करे।

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू में व्रजधारिणी॥27॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चांगुलीषु च।
नखांछूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥

अर्थात : कण्ठ के बाहरी भाग में नीलग्रीवा और नलकूबरी सुरक्षित रखें। मेरी दोनों भुजाओं और दोनों कंधों पर खड्गिनी की वज्रधारिणी रखें। दोनों हाथों में दण्डिनी और उँगलियों में अम्बिका रखें। शूलेश्वरी अपने नखों को सुरक्षित रखें, कुलेश्वरी कुक्षि पेट में रहकर बचाओ।

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥29॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥30॥

अर्थात : शोकविनाशिनी देवी मन और महादेवी दोनों स्तनों की रक्षा करे। ललिता देवी हृदय में रहकर रक्षा करे और शूलधारिणी उदर में रहकर रक्षा करे। नाभि में गुह्येश्वरी और कामिनी की रक्षा करे। पूतना और कामिका महिषवाहिनी गुदा और लिङ्ग की रक्षा करें।

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जंघे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31॥
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादांगुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥32॥

अर्थात : भगवती कटि भाग में और विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करे। सब कुछ देने वाली देवी महाबला दोनों पिण्डलियों की रक्षा करे। तैजसी देवी दोनों चरणों और नारसिंही दोनों घुटनों की रक्षा करे। तलवासिनी पैरों के तलुओं में और श्रीदेवी पैरों की उँगलियों में रहकर रक्षा करे।

नखान्‌ दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33॥
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥34॥

अर्थात : ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों और दंष्ट्राकराली देवी नखों की रक्षा करे, जो अपनी दाढों से भयंकर लगती हैं। रोमावलियों के छिद्रों में कौबेरी और त्वचा की देवी को सुरक्षित रखें। पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, माँस, हड्डी और मेद को बचाए। आँतों की कालरात्रि और पित्त की मुकुटेश्वरी की रक्षा करें।

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥35॥
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥

अर्थात : पद्मावती देवी मूलाधार आदि कमल-कोशों में और चूड़ामणि देवी कफ में रहकर रक्षा करे। नख की ज्वालामुखी सुरक्षित रखें। वह अभेद्य देवी शरीर की सभी संधियों में रहकर रक्षा करे, जो किसी भी अस्त्र से भेद नहीं हो सकता। परमेश्वर! मेरे वीर्य की रक्षा करो। मेरी आत्मा, मन और बुद्धि को छत्रेश्वरी छाया की रक्षा करे।

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्‌।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38॥

अर्थात : हाथ में वज्र रखकर वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा करे। मेरे जीवन को बचाने के लिए कृपा करो, भगवान! योगिनी देवी हर समय रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श की रक्षा करे, साथ ही सत्त्व, रजो और तमोगुणों की भी रक्षा करे।

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान्‌ रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40॥

अर्थात : वाराही काल का बचाव करें। वैष्णवी धर्म की रक्षा करे और चक्रधारी (यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन और विद्या) देवी रक्षा करे। इन्द्राणि, मेरे गोत्र को बचाओ। चण्डिके! मेरे पशुओं को बचाओ, मेरे पुत्रों और पत्नी की रक्षा महालक्ष्मी करे।

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥41॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥42॥

अर्थात : मेरे मार्ग की सुपथा और मार्ग की क्षेमकरी रखें। महालक्ष्मी राजा के दरबार में मेरी रक्षा करे और विजयी देवी सब भयों से मेरी रक्षा करे। देवी! जो स्थान कवच में नहीं बताया गया है, वह रक्षा से रहित है, सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित है;क्योंकि तुम दोनों विजेता और पराजित हो।

पदमेकं न गच्छेतु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥43॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्‌।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्‌॥44॥

अर्थात : बिना कवच सहारे कोई व्यक्ति कहीं भी नहीं जाएगा अगर वह अपने शरीर को सुधारना चाहता है। कवच पढ़कर यात्रा करना अति शुभ है। कवच की मदद से मनुष्य हर जगह सुरक्षित रहता है, धन प्राप्त करता है और अपने सभी लक्ष्यों को पूरा करता है। वह जो कुछ चाहता है, उसे पाता है। वह आदमी इस जगत में तुलना रहित अद्भुत ऐश्वर्य का हिस्सा बनता है।

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्‌॥45॥
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्‌।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥46॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥47॥

अर्थात : कवच से सुरक्षित व्यक्ति शांत स्वाभाव में रहता है। वह तीनों जगह पूजनीय है और युद्ध में पराजित नहीं होता। देवताओं को भी देवी का यह कवच दुर्लभ लगता है। जो व्यक्ति इसे हर दिन तीनों संध्याओं पर श्रद्धापूर्वक पढ़ता है, उसे दैवी रक्षा मिलती है। और तीनों जगह वह पराजित नहीं होता। इतना ही नहीं, वह सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहता है।

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जंगमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्‌॥48॥
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥49॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥50॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥51॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्‌॥52॥
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥53॥

अर्थात : उसकी सभी व्याधियाँ, जैसे मकरी, चेचक और कोढ़, नष्ट हो जाती हैं। कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष; साँप और बिच्छू के काटने से चढ़ा हुआ जङ्गम विष; और अहिफेन और तेल के मिलाने से बनने वाला कृत्रिम विष।यह कवच हृदय में धारण करने पर मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाता है, जैसे कि मारण-मोहन जैसे मन्त्र-यन्त्र।

केवल इतना नहीं, मनुष्य को हृदय में कवच धारण करते हुए देखते ही ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड, भैरव और अन्य बुरे देवता भी भाग जाते हैं. इनमें पृथ्वी पर रहने वाले ग्राम देवता, आकाशचारी देवता, जल के संबंध से प्रकट होने वाले गण भी शामिल हैं। राजा एक कवचधारी व्यक्ति का सम्मान बढ़ाता है। यह कवच मानव तेज को बढ़ाता है और अच्छा है।

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्‌।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥54॥
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्‌।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥56॥

अर्थात : कवच का पाठ करने वाले व्यक्ति को उसके सुयस के साथ-साथ उच्चता मिलती है। जिस व्यक्ति ने पहले कवच का पाठ करके फिर सप्तशती चण्डी का पाठ किया, उसकी संतान परम्परा जब तक वन, पर्वत और काननों सहित यह धरती बनी रहती है, तब तक चलती रहेगी। पुरुष को देह का अंत होने पर भगवती महामाया की कृपा से नित्य परमपद मिलता है, जो देवताओं को भी दुर्लभ है। वह सुंदर दिव्य रूप में रहता है और कल्याण शिव के साथ प्रसन्न होता है।

॥ इति देव्याः कवचं संपूर्णम्‌ ॥

अर्थात : माँ दुर्गा का यह कवच बहुत ही ज्यादा शुभ है। दुर्गा कवच दुर्गा सप्तशी का एक भाग है, जो मार्कंडेय पुराण से चुने गए विशिष्ट श्लोकों से बना है। देवी दुर्गा की आस्था करने वाले लोग नवरात्र के दौरान दुर्गा कवच का जाप करते हैं।

Shri Durga Kavach PDF Download

यहाँ 2 प्रकार की पीडीएफ फाइल दी है, पहली में हिंदी भाषी दुर्गा कवच है और दूसरी में संस्कृत आधारित दुर्गा कवच है।

(1) Durga Kavach PDF In Hindi

PDF Name Durga Kavach Hindi
Total Pages 5
PDF Size 80 KB
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(2) Durga Kavach PDF In Sanskrit

PDF Name Durga Kavach Sanskrit
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2 Best Durga Kavach Books

यदि आप 40-50 रुपये खर्च कर सकते है, तो ऑनलाइन मिल रही 2 स्पेशल श्री दुर्गा बुक जरूर खरीदनी चाहिए।

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यह समझे : इसमें पहले किताब श्री दुर्गा सप्तशति के बारे में है और दूसरी किताब सम्पूर्ण दुर्गा कवच की है।

श्री दुर्गा कवच पाठ कैसे करे

हिन्दू धर्म अनुसार यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कवच है। जिसका पाठ आपको सही विधि और जानकारी के साथ ही करना है।

  • शुक्रवार का दिन दुर्गा कवच पाठ के लिए सबसे अच्छा और शुभ दिन है।
  • कवच का पाठ करने के लिए आपको सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर लेना है।
  • फिर मंदिर में गंगाजल से छिड़काव कर दुर्गा मां की प्रतिमा या चित्र को रखें।
  • आगे श्री माँ देवी को फल और लाल रंग का अड़हुल फूल अर्पित करें।
  • अब माता रानी की मूर्ति के सामने गौ माता के घी का दीपक जलाएं और धूप करे।
  • इस प्रक्रिया के बाद ग्यारह बार माँ दुर्गा के बीज मंत्र का जाप करें।
  • इतना करने के बाद आगे श्री दुर्गा कवच का पाठ (पढ़ना) शुरू कर दीजिये।

कोशिश करे की पाठ के दौरान घर के सभी सदस्य मंदिर स्थान पर ही मौजूद हो। ताकि माँ की कृपा और आशीर्वाद पुरे परिवार पर बनी रहे।

श्री दुर्गा कवच पाठ के लाभ जाने

यह बहुत ही विशेष लाभ देने वाला श्री दुर्गा कवच है, जिसमे निम्नलिखित फायदे अवश्य होते है।

  • शत्रुओं से सुरक्षा – श्री दुर्गा कवच का पाठ करने से मां दुर्गा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
  • भय और चिंता से मुक्ति – कवच के प्रभाव से भक्तों को भय और चिंता नहीं रहती, वे निडर बनते हैं।
  • आपदाओं से सुरक्षा – कवच आपदाओं जैसे आग, बाढ़, भूकंप आदि से बचाता है।
  • रोगों से मुक्ति – कवच के प्रभाव से भक्तों को रोग और बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
  • पापों से मुक्ति – कवच का पाठ करने से अधिकांश पाप दूर हो जाते हैं।
  • सुख-शांति की प्राप्ति – भक्त मानसिक शांति और सुख की अनुभूति करता है।
  • धन और समृद्धि प्राप्ति – माँ के आशीर्वाद से धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार श्री दुर्गा कवच पाठ के कही लाभ हैं, जो भक्तों के कल्याण के लिए जरुरी हैं।

आशा करता हु श्री दुर्गा कवच सम्बंधित अच्छी जानकारी देने में सफल रहा हु। मिलते है अपनी नेक्स्ट पोस्ट में तब तक टेक केयर।

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By Karanveer

में करनवीर पिछले 8 साल से Content Writing के कार्य द्वारा जुड़ा हूँ। मुझे ऑनलाइन शॉपिंग, प्रोडक्ट रिव्यु और प्राइस लिस्ट की जानकारी लिखना अच्छा लगता है।

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