यहाँ Original Bhagwat Geeta Hindi PDF को डाउनलोड करने की सुविधा दी है। जिसमे 18 अध्याय और 700 श्लोक समाहित हैं। यह हमारी हिंदू संस्कृति का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
सर्वप्रथम श्रीमद भागवत गीता की शुरुआत श्रीकृष्ण और अर्जुन के वार्तालाप से शुरू हुई थी। यह वो समय था जब भारत का सबसे बड़ा युद्ध महाभारत चल रहा था। इस दौरान भगवान कृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को गीता ज्ञान द्वारा धर्म, कर्म, ज्ञान, भक्ति सब समझाया है।
संपूर्ण गीता संदेश द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में 5 लाभ अवश्य प्राप्त करता है।
- आदर्श जीवन जीने का सही मार्ग मिलता है।
- हमें धैर्य, संयम और संतुलन समझ आता है।
- जीवन में अधिकांश अच्छे कर्म कर पाते है।
- ईश्वर भक्ति और प्रेम का मार्ग प्राप्त होता है।
- हर समस्या से लड़ने की क्षमता मिलती है।
महाभारत की कठिन परिस्थिति में अर्जुन मैदान छोड़ने की कोशिश कर रहे थे। बिलकुल ऐसे जैसे आज हम अपनी परेशानियों से भागते है। ऐसे में श्री कृष्णा ने अपने ज्ञान द्वारा अर्जुन में प्रोत्साहन भरने का काम किया।
विशेष : अर्जुन को कहे हर शब्द और बातें आज प्रत्येक मनुष्य का जीवन सफल कर दे ऐसी है। इसी कारण आपको संपूर्ण श्रीमद भागवत गीता किताब जरूर पढ़नी चाहिए।
Bhagwat Geeta Hindi PDF Download
यहाँ हमने भारत की सबसे अच्छी Bhagwat Geeta Hindi Book का PDF Download लिंक दिया है। जिसे तैयार करने का श्रेय गीता प्रेस गोरखपुर पब्लिकेशन को जाता है।
PDF Name | Bhagwat Geeta Hindi |
Total Pages | 1299 |
PDF Size | 6.83 MB |
Publisher | Gita Press GP |
Language | Sanskrit, Hindi |
Provider | Sabsastaa |
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श्रीमद भागवत गीता PDF की विशेषताएं
- बिलकुल Original Bhagwat Geeta PDF है।
- किताब का हर पेज Clear HD Quality में है।
- 1300 पेज की संपूर्ण भागवत गीता अर्थ सहित है।
- संस्कृत श्लोको का सरल हिंदी अनुवाद दर्शाया है।
- 250 रुपये की असली किताब मुफ्त में मिल रही है।
ये सभी फायदे मुफ्त में पाने के लिए आप भागवत गीता को अवश्य डाउनलोड कर सकते है। लेकिन यदि हाथ में ओरिजिनल किताब चाहिए या किसी को बुक गिफ्ट करनी हो।
तो हमारी ऑफर लिंक द्वारा Bhagwat Geeta Yatharoop जरूर ख़रीदये। इस बेहतरीन किताब को लाखो लोग खरीद चुके है।
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आपकी अधिक सहायता के लिए यहाँ ऑनलाइन उपलब्ध 3 Best Bhagwat Geeta Book के बारे में बता रहे है।
(1) Shrimad Bhagwat Geeta Yatharoop
Author | Bhaktivedanta Swami |
Publication | January 2019 |
Positive Review | 97% |
Star Rating | 4.8/5 |
क्या आप जानते हैं? Bhagavad Gita में आपके जीवन की हर समस्या का समाधान छिपा है। इसलिए कुछ बुद्धिमान लोगों ने इसे खरीदा और पढ़ा है। ऑनलाइन खरीदारी करने वाले 97% लोग किताब से पूरी तरह खुश हैं।
इन 97 प्रतिशत लोगों ने कहा कि भागवत गीता ने उनकी जिंदगी बदल दी। पुस्तक में दर्शाये सही दृष्टिकोण हर समस्या का हल कर सकते है। बुक में श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को जो भी अच्छी बातें सिखाई हैं, वो सब शामिल हैं।
हर साल, भागवत गीता की प्रतिष्ठा दुनिया भर में सर्वोच्च रहती है। बुक भारत के अलावा रशिया में 50 लाख बार बिकी है। यही कारण है यह किताब पवित्र ग्रंथो में सर्वश्रेष्ठ है। अपने जीवन का मूल्य समझना है या प्रभु की दृष्टि से सृष्टि को देखना है। तो मैं आपसे कहुगा भागवत गीता पुस्तक एक बार जरूर पढ़ें।
विशेषताएं
- जीवन को समझने की दिशा मिलती है।
- हमारे अच्छे और बुरे कर्म समझ आते है।
- अपनी मानसिक शांति में प्रगति होती है।
- यह सबसे अच्छी प्रेरणादायी किताब है।
कीमत
भागवत गीता को कही बुक पब्लिशर ने पब्लिश किया है। जिसमे सबसे बेहतरीन किताब भक्तिवेदांता की तरफ से है। ऑनलाइन इस किताब की कीमत ₹260 है।
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(2) RR Srimad Bhagavad Gita Book
Author | RR Varma |
Publication | October 2014 |
Positive Review | 90% |
Star Rating | 4.5/5 |
पुरानी ग्रन्थ किताबो के लिए अधिकतर लोग गीता प्रेस गोरखपुर बुक्स पर ही भरोसा करते है। इन्ही के ऑथर आरआर वर्मा जी द्वारा तैयार की गयी एक विशेष भागवत गीता किताब है। जिसे अमेज़न पर अधिकांश लोगो ने पसंद किया है।
इस किताब में सम्पूर्ण भागवत गीता जैसी है वैसी ही बताई है। जिसमे मूल संस्कृत श्लोक का प्रमाण ज्यादा देखने मिलता है। ग्राहक कहते है यह किताब उन्हें भगवान द्वारा जुड़ने का सरल मार्ग समान लगती है।
किताब की पूरी बनावट और पेज गुणवत्ता बेहतरीन है। इसी कारण ज्यादातर कस्टमर्स इसे अच्छे से पढ़ पाते है। बुक गीता में दिया पूरा सन्देश हमें सही से समझाने में सफल रहती है। अधिक जानकारी के लिए आप अमेज़न पर बुक देख लीजिये।
विशेषताएं
- असली श्लोक में भागवत गीता समझायी है।
- ऑथर ने बहुत अच्छे से सब लिखा है।
- यह किताब भगवान की भक्ति समान है।
- हिंदी पाठको के लिए अच्छी किताब है।
प्राइस
ऑनलाइन अमेज़न पर यह किताब प्राइस ₹230 में मिल जाती है। इस कीमत पर हमें पेपरबैक क्वालिटी की बुक मिलती है।
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(3) Original Bhagavad Gita In Hindi
Author | BG Narasingha |
Publication | January 2019 |
Positive Review | 92% |
Star Rating | 4.6/5 |
ऑथर स्वामी बीजी नरसिंघा द्वारा तैयार की गयी ओरिजिनल भागवत गीता को हजारो लोगो ने पढ़ा है। किताब में Clear And Concise Commentary है, जिससे अधिकतर बाते आसानी से समझ आ जाती है।
भागवत गीता एक ऐसी किताब है जिसे समझना हर किसी के लिए आसान नहीं होता। लोगो की इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए ऑथर ने बुक को सरल रूप दिया है। साथ किताब का जो Original Content है उसे भी बनाये रखा है।
करीब 90 प्रतिशत से ज्यादा ग्राहकों ने अपने रिव्यु में लिखा की उन्हें श्री कृष्ण की अधिकतर बाते समझ आ गयी। बुक में पेज गुणवत्ता और अक्षरों की सम्पूर्ण लिखावट अच्छी है, जिससे पढ़ने या समझने में परेशानी नहीं होती।
विशेषताएं
- हर संस्कृत शब्द का आसान रूपांतरण है।
- गीता बुक के मुख्य श्लोक भी शामिल है।
- महाभारत के अध्यायों का बेहतर रूप है।
कीमत
ऑनलाइन कीमत ₹250 में उपलब्ध इस बेहतरीन किताब को 92% पॉजिटिव रिव्यु मिले है।
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भागवत गीता के सभी अध्याय और श्लोक
संपूर्ण भागवत गीता मूलरूप से 18 अध्याय और 700 श्लोको पर आधारित है।
अध्याय | अध्याय का नाम | श्लोक |
1 | अर्जुनविषादयोग | 47 |
2 | सांख्ययोग | 72 |
3 | कर्मयोग | 43 |
4 | ज्ञानकर्मसंन्यासयोग | 42 |
5 | कर्मसंन्यासयोग | 29 |
6 | आत्मसंयमयोग | 47 |
7 | ज्ञानविज्ञानयोग | 30 |
8 | अक्षरब्रह्मयोग | 28 |
9 | राजविद्याराजगुह्ययोग | 34 |
10 | विभूतियोग | 42 |
11 | विश्वरूपदर्शनयोग | 55 |
12 | भक्तियोग | 20 |
13 | क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग | 34 |
14 | गुणत्रयविभागयोग | 27 |
15 | पुरुषोत्तमयोग | 20 |
16 | दैवासुरसम्पद्विभागयोग | 24 |
17 | श्रद्धात्रयविभागयोग | 28 |
18 | मोक्षसंन्यासयोग | 78 |
प्रत्येक अध्याय में रहे श्लोक द्वारा जीवन की बहुमूल्य बातों का ज्ञान मिलता है। जो महाभारत के समय भगवान श्री कृष्णजी ने अर्जुन को बताई थी।
श्रीमद भागवत गीता के श्लोक (Bhagwat Geeta Shlok)
जैसा की हमने बताया भागवत गीता में कुल 700 श्लोक है। यहाँ उन्ही में से हमने 10 महत्वपूर्ण श्लोक को अर्थ के साथ समझाया है।
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥
अर्थ : यह सत्य है कि कोई भी मनुष्य किसी भी समय बिना कर्म किए नहीं रह सकता। क्योंकि सभी लोगों को प्रकृति के गुणों द्वारा स्वतंत्र कर्म करने की आवश्यकता होती है।
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥
अर्थ : मिथ्याचारी (दम्भी) एक बुद्धिहीन व्यक्ति है जो सभी इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का विचार करता रहता है।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
अर्थ : कड़ी मेहनत के बिना कोई काम पूरा नहीं हो सकता। सिर्फ सोचने से काम नहीं होता, काम करने के लिए मेहनत भी करनी होती है। सोते हुए शेर को भी हिरण का शिकार उठ कर करना पड़ता है, हिरण कभी स्वयं नहीं आता।
परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम्।
परस्त्रीं परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत।।
अर्थ : पराया अन्न, पराया धन, पराया दान, पराई स्त्री और दूसरे लोगों की निंदा, इनकी इच्छा मानव को कभी नहीं करनी चाहिए।
आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते।
नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥
अर्थ : जीवन बेशकीमती रत्नों से अधिक मूल्यवान है, जो एक बार भी वापस नहीं लाया जा सकता। यही कारण है कि इसे बेकार कामों में खर्च करना एक बहुत बड़ी गलती है।
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥
अर्थ : एक क्षण गवाये बिना ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और प्रत्येक कण बचाकर धन कमाना चाहिए। क्योंकि क्षण गवाने वाले को विद्या कहाँ, और कण को कम समझने वाले को धन कहाँ।
दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले ।
श्रेष्ठानि कन्यागोभूमिविद्या दानानि सर्वदा ॥
अर्थ : गीता अनुसार सभी दानों में विद्यादान, गोदान, भूमिदान, और कन्यादान सबसे ऊपर माना जाता है।
न चोरहार्यं न च राजहार्यंन भ्रातृभाज्यं न च भारकारी ।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥
अर्थ : व्यक्ति के विद्या धन को कोई चुरा नहीं सकता, राजा खुद छीन नहीं सकता। नाही भाईयों में उसका बंटवारा हो सकता है, विद्या ज्ञान का भार नहीं लगता और विद्या बांटने से बढ़ती है। सच में विद्या रूपी धन पाना सर्वश्रेष्ठ है।
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः सा उच्यते॥
अर्थ : जो मान और अपमान में समगुण है, मित्र और दुश्मन पक्ष में भी समगुण है एवं सम्पूर्ण आरम्भों में कर्तापन के अभिमान से रहित है, वह मनुष्य बेहतर होता है।
न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥
अर्थ : कल क्या होगा हम नहीं जानते, इसलिए जो कुछ करना है आज ही करना चाहिए। यही बुद्धिमान व्यक्ति का मुख्य एंव विशेष संकेत है।
श्रीमद भागवत गीता के अध्याय
यहाँ 18 अध्याय को सरल अर्थ के साथ संक्षिप्त में समझाया गया है।
(1) अर्जुनविषादयोग
‘अर्जुनविषादयोग’ भगवद्गीता का पहला अध्याय है, जिसमे ४७ श्लोक शामिल हैं। अर्जुन को युद्ध से पूर्व कुरुक्षेत्र में क्रोध आता है। युद्ध में कई महान योद्धाओं के मरने के विचार से वे दुखी हो उठते हैं, जिनमें उनके श्रेष्ठ गुरु द्रोणाचार्य भी शामिल थे। अर्जुन इस भयानक युद्ध से निराश हो जाते हैं और श्रीकृष्ण से कहते हैं कि जीत का कोई महत्व नहीं है।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि योद्धा का कर्तव्य है युद्ध लड़ना, चाहे परिणाम जो हो। वे अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा अविनाशी है, इसलिए वह न कभी मर सकती है और न ही किसी को मार सकती है। यही कारण है कि अर्जुन को डरने की जरूरत नहीं है। ‘अर्जुनविषादयोग’ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मन से उनके संदेह को दूर किया और उन्हें युद्ध करने के लिए प्रेरित किया।
(2) सांख्ययोग
भागवत गीता का द्वितीय अध्याय ‘सांख्ययोग’ कहलाता है, जिसमे कुल 72 श्लोक हैं। गीता के मूल सिद्धांतों को श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ‘सांख्ययोग’ में सिखाया है। श्रीकृष्ण ने कहा कि जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं, लेकिन मनुष्य को इनसे ऊपर उठकर अपना काम करना चाहिए।
आत्मा कभी नहीं मरती, शरीर मरने पर भी आत्मा जीवित रहती है। मानव को आत्म-ज्ञान प्राप्त करके कर्म करना चाहिए, बिना किसी परिणाम की चिंता किए। सच्चा ज्ञानी और योगी वह है जो सभी कामों को छोड़कर सिर्फ ईश्वर की पूजा करता है। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ‘सांख्ययोग’ में बताया कि कर्मयोग ही मनुष्य का सर्वोच्च कर्तव्य है, फल की उम्मीद नहीं करते हुए।
(3) कर्मयोग
श्रीमद भगवद् गीता का तीसरा अध्याय ‘कर्मयोग’ के नाम से प्रचलित है, इसमें 43 श्लोक सम्मिलित हैं। ‘कर्मयोग’ में श्रीकृष्ण द्वारा कर्म के महत्व पर बल दिया गया है। भगवान श्रीकृष्ण का कहना है कि मनुष्य को अपने कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता।
हर कोई कर्म करने के लिए बाध्य है, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो। कोई भी एक पल के लिए भी कर्म से मुक्त नहीं हो सकता। सभी का कर्तव्य है कि वे निष्काम भाव से, फल की इच्छा रखे बिना कर्म करें। इससे समाज की उन्नति होगी और व्यक्ति भी मुक्ति को प्राप्त होगा।
(4) ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
गीता बुक का चौथा अध्याय ‘ज्ञानकर्मसंन्यासयोग’ कहलाता है, जिसमे 42 श्लोक हैं। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने ज्ञान और कर्म के बीच की संबंधिता पर चर्चा की है। श्रीकृष्ण ने कहा कि ज्ञान सर्वोपरि है, हालांकि कर्म भी महत्वपूर्ण है।
ज्ञान कर्म का परिणाम निर्धारित करता है, जबकि ज्ञानहीन कर्म व्यर्थ है। निष्काम कर्म करने वाले बंदी हैं, लेकिन सकाम कर्म करने वाले बंदी हैं। इसलिए श्रीकृष्ण ने ज्ञानपूर्ण कार्य करने का आह्वान किया है। उनका कहना है कि ज्ञान और ध्यान का त्याग करके कर्म करना भी सही नहीं है। मनुष्य को मुक्ति सिर्फ एक संतुलित ज्ञान और कर्म से मिल सकती है।
(5) कर्मसंन्यासयोग
गीता का पांचवां अध्याय ‘कर्मसंन्यासयोग’ है, जिसमें 29 श्लोक हैं। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने कर्मयोग और कर्मसंन्यास के बीच अंतर बताया है। कृष्ण ने ‘कर्मसंन्यासयोग’ में केवल कर्म त्याग की जगह निष्काम कर्मयोग को सही माना है।
श्रीकृष्ण ने कहा कि कर्मयोग में कर्म किया जाता है परंतु फल की आशा नहीं की जाती। जबकि कर्मसंन्यास वह है जब कोई सभी कार्यों का पूर्ण त्याग कर देता है। श्रीकृष्ण ने कहा कि मनुष्य को कर्म का पूरा त्याग करना संभव नहीं है। इसलिए, सभी को कर्म करना चाहिए, लेकिन फलकामना छोड़ देनी चाहिए।
(6) आत्मसंयमयोग
‘आत्मसंयमयोग’ नामक भगवद् गीता का षष्ठ अध्याय 47 श्लोक से बना है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने मन को नियंत्रित करने और आत्मसंयम पर बल दिया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति को अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करना चाहिए, जो आत्म-ज्ञान का आधार है।
यदि कोई अपनी इंद्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकता, तो वह आत्म-ज्ञान नहीं पा सकता। श्रीकृष्ण ने कहा कि अभ्यास ही मन का प्रबंध कर सकता है। ध्यान और अभ्यास से ही व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है। जीवन में खुद पर नियंत्रण होना जरुरी है, वर्ना गलत कर्म हावी हो सकते है।
(7) ज्ञानविज्ञानयोग
भागवत गीता का सातवां अध्याय ‘ज्ञानविज्ञानयोग’ कहलाता है, इसमें 30 श्लोक समाहित हैं। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने विज्ञान और ज्ञान की उत्पत्ति बताई है। श्रीकृष्ण ने कहा कि ज्ञान वह है जो सभी जीवों के आत्मा को जानता है। लेकिन विज्ञान ही परमात्मा और उसके गुणों को जानता है।
श्रीकृष्ण ने कहा कि सच्चा ज्ञानी वह है जो मुझमें लीन होकर मेरी सेवा करता है। इस तरह श्रीकृष्ण ने इस अध्याय में भक्ति, ज्ञान और विज्ञान का महत्व बताया है। जो जीवन की कही महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डालता हुआ नजर आता है।
(8) अक्षरब्रह्मयोग
भगवद् गीता का आठवां अध्याय ‘अक्षरब्रह्मयोग’ के नाम से लोग जानते है, इसमें 28 श्लोक समाहित हैं। अध्याय में श्रीकृष्ण ने अक्षर ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन किया है। अक्षर ब्रह्म का अर्थ होता है नित्य और अविनाशी परमात्मा।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं ही अक्षर ब्रह्म हूँ, मैं सर्वोपरि परम आत्मा हूँ। मैं सभी प्राणियों में व्याप्त हूँ, मेरे बिना सृष्टि का अस्तित्व ही नहीं है। जो मुझे जानता है और मेरी शरण में आता है, वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इस समग्र दुनिया का मैं ही परम सत्य हूँ।
(9) राजविद्याराजगुह्ययोग
राजविद्याराजगुह्ययोग भागवत गीता का नवां अध्याय है, इसमें 34 श्लोक शामिल हैं। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने राजविद्या और राजगुह्य के बारे में बताया है। श्रीकृष्ण ने कहा कि राजविद्या योग सभी को जानता है और राजगुह्य योग मुझ परमात्मा को जानता है। इन दोनों संयोजनों से सर्वश्रेष्ठ ज्ञान मिलता है।
यह गुप्त ज्ञान अर्जुन को श्रीकृष्ण ने दिया क्योंकि वह उनका बहुत प्रिय शिष्य था। इस ज्ञान प्राप्ति के बाद अर्जुन को कही ऐसी बातें समझ में आयी जिससे युद्ध को जितना उसके लिए संभव था।
(10) विभूतियोग
‘विभूतियोग’ नामक भगवद् गीता का दसवां अध्याय है जो 42 श्लोक से बना है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अपने ऐश्वर्य और विभूति का वर्णन किया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे उच्च परमेश्वर हैं जो हर जगह है। वे सभी देवताओं में सबसे अच्छे और सर्वोपरि हैं।
वह वेदों को जानते हैं और महर्षियों को पढ़ाते हैं, वे ही सृष्टि का पालनकर्ता और रचयिता हैं। वे हर जीव में हैं। उनकी शरण में आने वाले मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने ‘विभूतियोग’ में अपने परमेश्वर स्वरूप और शक्तियों का वर्णन किया है।
(11) विश्वरूपदर्शनयोग
यह श्रीमद भगवद् गीता का ग्यारहवां अध्याय है, जो विश्वरूपदर्शनयोग कहलाता है। इसमें 47 महाज्ञान देने वाले श्लोको का संग्रह हैं। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना सर्वव्यापी स्वरूप दिखाया। भगवद् गीता का सबसे रहस्यमय अध्याय ‘विश्वरूपदर्शनयोग’ है।
श्रीकृष्ण ने कहा, हे अर्जुन! मैं तुम्हें अपना दिव्य स्वरूप दिखाता हूं, जिसमें पूरे ब्रह्मांड को देख सकते हो। इसके बाद श्रीकृष्ण ने अपना विशाल और भव्य रूप दिखाया। जो कई देवताओं, ऋषि-मुनिओं और अद्भुत चमत्कारों से भरा था। इस दृश्य से योद्धा अर्जुन बहुत आश्चर्यचकित हुए।
(12) भक्तियोग
भक्तियोग भगवद् गीता का बारहवां अध्याय है, जिसमे कुल 20 श्लोक देखने मिलते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने ‘भक्तियोग’ में भक्ति का मार्ग बताया है।
श्रीकृष्ण ने कहा जो मेरा भक्त है, वह मुझे सबसे अच्छा मानता है और मेरी तथा मेरे गुणों पर ध्यान देता है। मैं ऐसे भक्त को स्वयं बचाता हूँ और उसे मोक्ष देता हूँ। मेरा भरोसा कभी नहीं मरता, ‘भक्तियोग’ में श्रीकृष्ण ने भक्ति को ही मोक्ष का सरल उपाय बताया है।
(13) क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग
गीता का तेरहवां अध्याय ‘क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग’ कहलाता है, जिसमे 34 श्लोक शामिल हैं। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने क्षेत्र और क्षेत्रज्ञों की चर्चा की है।
श्रीकृष्ण ने कहा कि क्षेत्र शरीर का अर्थ है, जबकि क्षेत्रज्ञ आत्मा का अर्थ है। शरीर को आत्मा ही चलाती है शरीर केवल भौतिक है, आत्मा ही चेतना प्रदान करती है। मुक्ति पाया व्यक्ति क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के बीच का फर्क समझ लेता है।
(14) गुणत्रयविभागयोग
गुणत्रयविभागयोग भगवद् गीता का चौदहवां अध्याय है, इसमें 27 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण ने इस अध्याय में सत्व, रज और तम के तीन गुणों की चर्चा की है।
श्रीकृष्ण ने कहा कि सत्वगुण ज्ञान और आनंद देता है। रजोगुण लोगों को काम करने की प्रेरणा देता है, जबकि तमोगुण लोगों को अज्ञानता और अहंकार देता है। जीवों में प्रकृति के तीनों भेद हैं, मानव इन तीनों गुणों से ऊपर उठकर मुक्ति पा सकता है।
(15) पुरुषोत्तमयोग
‘पुरुषोत्तमयोग’ भगवद् गीता का पंद्रहवां अध्याय है, जिसमे 20 श्लोक हैं। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने परमात्मा, या परमपुरुष का वर्णन किया है। श्रीकृष्ण ने कहा कि परमात्मा निराकार है और वह सभी जगह है।
वह हर व्यक्ति में व्याप्त है और हर व्यक्ति उसमें लीन है। उसमे सूर्य से भी अधिक प्रकाश है, परमात्मा को जानने वाले लोग दुःख से छुटकारा पाते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं। वह परम पुरुष ही प्रभु श्रीकृष्ण का परम धाम है।
(16) दैवासुरसम्पद्विभागयोग
दैवासुरसम्पद्विभागयोग भागवत गीता का सोलहवां अध्याय है, जिसमे 23 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण ने इस अध्याय में दैवी और आसुरी स्वभाव वाले लोगों के गुणों का वर्णन किया है।
श्रीकृष्ण ने कहा सदाचारी, सत्यवादी और तपस्या करने वाले लोगों में दैवी स्वभाव है। जबकि आसुरी स्वभाव वाले लोग अहंकारी, छली और क्रूर होते हैं। मनुष्य को दैवी गुणों का अनुसरण करना चाहिए और आसुरी गुणों से बचना चाहिए।
(17) श्रद्धात्रयविभागयोग
श्रद्धात्रयविभागयोग भगवद् गीता का सत्रहवां अध्याय है, इसमें कुल 28 श्लोक शामिल हैं। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने तीन प्रकार की श्रद्धा दर्शायी हैं।
श्रीकृष्ण ने कहा कि सात्विक श्रद्धा वह है जो गुरुओं, देवताओं और वेदों में आस्था रखती है। राजसी विश्वास कर्मकांडों पर विश्वास करता है, जबकि तामसी विश्वास भूतों और प्रेतों पर विश्वास करता है। श्रीकृष्ण ने कहा कि सात्विक श्रद्धा सर्वश्रेष्ठ है, अन्य दोनों निम्नस्तरीय हैं।
(18) मोक्षसंन्यासयोग
‘मोक्षसंन्यासयोग’ भगवद् गीता का अंतिम अध्याय है और इसमें 78 श्लोक हैं। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने मोक्ष का उपाय बताया है।
श्रीकृष्ण ने कहा कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए कर्म, ज्ञान और भक्ति का एक संयोजन ही पर्याप्त है। पूर्ण समर्पण, परमात्मा का ध्यान और निष्काम कर्म ही जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त कर सकते हैं। मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य यही होना चाहिए।
श्रीमद् भगवद गीता पर महानुभावो के विचार
इस महान धर्म ग्रंथ को लेकर हजारो महानुभावो ने अपने विचार व्यक्त किये है। यहाँ उन्ही में से कुछ महत्वपूर्ण विचारो को हम निचे दर्शा रहे है।
(1) संस्कृत श्लोक आधारित विचार
गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम्।
गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम्।।
गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं पदम्।
गीता मे परमं गुह्यं गीता मे परमो गुरुः।।
श्री कृष्ण के अनुसार अर्थात : श्री कृष्ण कहते है गीता मेरा हृदय है। गीता मेरा सबसे उत्तम सार है, गीता मेरा अति श्रेष्ठ ज्ञान है। गीता मेरा अविनाशी ज्ञान है, गीता मेरा श्रेष्ठ निवासस्थान है। गीता मेरा परम पद है और गीता मेरा परम रहस्य भी। साथ ही गीता को मेरा परम गुरु समान मानता हु।
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।
महर्षि व्यास अनुसार अर्थात : गीता एक ऐसा ग्रंथ है जो भगवान विष्णु के मुखकमल से निकली हुई है। ऐसी गीता किताब को अच्छी तरह कंठस्थ कर लेना चाहिए। जब यही नहीं किया तो अन्य शास्त्रों से क्या ज्ञान लाभ?
गेयं गीतानामसहस्रं ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्रम् ।
नेयं सज्जनसंगे चित्तं देयं दीनजनाय च वित्तम ।।
आद्य शंकराचार्य अनुसार अर्थात : गाने योग्य गीता ग्रंथ श्री विष्णुसहस्रनाम का गान समान है। धरने योग्य श्री विष्णु भगवान का ध्यान समान है। चित्त तो सज्जनों के संग पिरोने योग्य है और वित्त दीन-दुखियों को देने योग्य समान है।
(2) सामान्य हिंदी आधारित विचार
महात्मा गाँधी : गीता मेरे लिए उस समय सहायरूप बानी जब मेरा अंतिम समय नजदीक आ चूका था। मैंने जब-जब खुद को अधिक कठिन परिस्थितियों में पाया तब-तब गीता के पास जाता हु। मेरे साथ कभी ऐसा नहीं हुआ की गीता द्वारा समाधान न मिला हो।
स्वामी विवेकानंद : महाग्रंथ ‘श्रीमद् भगवदगीता’ मेरे लिए उपनिषदरूपी बगीचों में से चुने हुए आध्यात्मिक सत्यरूपी पुष्पों से गुँथा हुआ पुष्पगुच्छ है।
महर्षि व्यास : भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली हुई गीता को संपूर्ण कंठस्थ कर के याद रखना चाहिए। यही सर्वोत्तम ज्ञान प्राप्त नहीं किया तो फिर क्या किया?
महात्मा थॉरो : गीता इतनी अद्भुत और व्यापक ज्ञान से भरी हुई है कि उसके रचयिता देवता ने लाखों वर्षों में भी इससे बेहतर कोई ग्रन्थ नहीं लिखा है।
श्रीमद भागवत गीता सार का वीडियो
यदि आप Bhagwat Geeta Hindi PDF पढ़ने की जगह वीडियो द्वारा संपूर्ण भागवत गीता सार प्राप्त करना चाहते है। तो निचे दर्शाया 14 घंटे का वीडियो देख सकते है।
सवाल जवाब (FAQ)
यहाँ भागवत गीता से जुड़े महत्वपूर्ण सवालो के जवाब बताये है।
(1) भगवत गीता में क्या लिखा है?
महाभारत के समय भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए थे वह सब भागवत गीता में लिखा है। बुक में 18 अध्याय और 700 श्लोक के आधार पर समझाया गया है। जिसमे आत्मा, परमात्मा, भक्ति, कर्म, जीवन, मुक्ति आदि सम्बंधित जानकारी है।
(2) गीता पढ़ने से क्या फायदा होता है?
ध्यानपूर्वक गीता पढ़ने पर कही तरह के फायदे प्राप्त होते है। जैसे,
- जीवन सकारात्मक उर्जाओ से भर जाता है।
- हम नकारात्मकता से दूर होने लगते है।
- दिमाग में सदबुद्धि का विकास होता है।
- कठिन समस्याओ का सामना कर पाते है।
- जीवन सम्बंधित कही प्रश्नो का जवाब मिलता है।
- अच्छे काम और कर्म करने की प्रेरणा मिलती है।
(3) भगवद गीता का मुख्य सारांश क्या है?
भगवद गीता हमें सिखाती है की जीवन में हमेशा सही बुद्धि के साथ अच्छे कर्म करने चाहिए। साथ ही बुरे कर्म से जितना हो सके उतना दूर रहना चाहिए।
(4) भागवत गीता क्यों पढ़नी चाहिए?
यदि अपने जीवन को सफल एंव सार्थक बनाना है तो भागवत गीता का सहारा लिया जा सकता है। क्यों की गीता पढ़ने पर हमारे हर जटिल प्रश्न का जवाब और हर समस्या का समाधान मिल जाता है।
(5) भगवत गीता के रचयिता कौन है?
भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद को लिखने का कार्य लेखक वेद व्यास जी ने किया था। आज के दिन कही बुक पब्लिशर ने इस बुक को अपने तरीके से बनाया है।
आशा करता हु Bhagwat Geeta Book सम्बंधित अच्छी जानकारी दे पाया हु। इस महत्वपूर्ण जानकारी को अपने सभी दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे।